31 जुलाई 2023 17 जुलाई को ऑस्ट्रेलिया के समुद्र तट पर बहकर आई एक रहस्यमयी चीज ने सबको हैरान कर दिया था। सोमवार को वहां की स्पेस एजेंसी ने...
31 जुलाई 2023
17 जुलाई को ऑस्ट्रेलिया के समुद्र तट पर बहकर आई एक रहस्यमयी चीज ने सबको हैरान कर दिया था। सोमवार को वहां की स्पेस एजेंसी ने बताया कि वो बेलनाकार अनजान चीज कुछ और नहीं बल्कि भारतीय रॉकेट का मलबा है। एजेंसी ने कहा है कि ये तीसरी स्टेज पर अलग हुआ PSLV लॉन्च व्हीकल का हिस्सा है।
इसकी जांच में ऑस्ट्रेलिया की स्पेस एजेंसी को 2 हफ्तों का समय लगा। पहले इस टुकड़े के जासूसी उपकरण और लापता MH370 फ्लाइट का हिस्सा होने की आशंका जताई जा रही थी। हालांकि, ISRO ने अब तक इस मामले से जुड़ी कोई जानकारी नहीं दी है।
स्टोरेज में रखा गया रॉकेट का मलबा
ऑस्ट्रेलिया की स्पेस एजेंसी ने कहा है कि फिलहाल 2 मीटर ऊंचे टुकड़े को स्टोरेज में रखा गया है। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्पेस ट्रीटी के तहत भारत भी इसकी जांच में सहयोग कर रहा है।
जांच के लिए ऑस्ट्रेलिया ने दुनियाभर की एजेंसियों से संपर्क किया था।
रॉकेट का हिस्सा मिलने वाले दिन ऑस्ट्रेलियाई स्पेस एजेंसी ने इसकी तस्वीर ट्वीट करते हुए कहा था- जुरियन बे, वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में मिली इस वस्तु की हम जांच कर रहे हैं। ये कोई फॉरेन स्पेस लॉन्च व्हीकल का हिस्सा हो सकता है।
स्पेस एजेंसी ने लोगों से इसे न छूने की हिदायत दी थी। साथ ही ये भी बताया था कि ऐसी ही अगर कोई और चीज मिलती है तो स्पेस एजेंसी को मेल पर जानकारी दें।
लोग इसे चंद्रयान से जोड़ रहे
ISRO और न ही ऑस्ट्रेलिया की स्पेस एजेंसी ने इस टुकड़े के बारे में ज्यादा जानकारी दी है। हालांकि, सोशल मीडिया पर लोग इस टुकड़े को चंद्रयान-3 से जोड़कर देख रहे हैं। इसकी लॉन्चिंग 14 जुलाई को दोपहर 2.35 बजे हुई थी।
5 अगस्त को ये चंद्रमा की ऑर्बिट में पहुंचेगा और 23 अगस्त को चंद्रमा पर लैंड करेगा। सफलता मिलते ही अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा।
जानें क्यों ऑस्ट्रेलिया को लौटाना होगा रॉकेट का टुकड़ा...
UN की ऑफिस फॉर आउटर स्पेस ट्रीटी के तहत अगर किसी देश में दूसरे देश की स्पेस ऑब्जेक्ट गिरती है तो उसे जांच के बाद वापस करना पड़ता है। इसकी जानकारी संयुक्त राष्ट्र संघ को भी देनी पड़ती है।
UNOOSA इस तरह पाई गई स्पेस ऑब्जेक्ट्स की एक सूची बनाकर अपने पास रखता है। ऑफिस फॉर आउटर स्पेस ट्रीटी को 13 दिसंबर 1958 को साइन किया गया था। ताकि स्पेस जुड़ी जानकारियों को लेकर सभी देशों के बीच तालमेल बनाया जा सके।
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