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कोलकाता रेप-मर्डर केस: सीबीआई बोली क्राइम सीन बदला गया, जज ने कहा- 30 सालों में ऐसा मामला नहीं देखा

नई दिल्ली। कोलकाता रेप मर्डर मामले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पीठ मामले की सुनवाई कर रही है. पीठ डॉक्ट...


नई दिल्ली। कोलकाता रेप मर्डर मामले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पीठ मामले की सुनवाई कर रही है. पीठ डॉक्टरों को काम पर लौटने का निर्देश दे रही है. देशभर के रेजीडेंट डॉक्टर पिछले कई दिनों से हड़ताल पर हैं, जिससे लाखों लोगों को परेशानी हो रही है. साथ ही कोर्ट ने ममता सरकार, आर जी कर हॉस्पिटल और पश्चिम बंगाल पुलिस के रवैये पर भी कई सवाल उठाए. जानिए, मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने क्या दलीलें दी.

सुप्रीम कोर्ट ने एम्स रेजिडेंट डॉक्टर की अर्जी पर सुनवाई करते हुए कहा की अगर डॉक्टर काम पर नहीं गए है, तो वो अनुपस्थित माने जायेंगे. कानून अपने हिसाब से काम करेगा. साथ ही आश्वासन दिया कि नेशनल टास्क फोर्स सभी लोगों की बात सुनेगा. मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि डॉक्टरों को काम पर लौटना जरूरी है. अस्पतालों के हेड भी डॉक्टर्स हैं और वो उनकी समस्याओं और मुद्दों पर हम साथ हैं, लेकिन अगर डॉक्टर काम पर वापस नहीं लौटे, तो सरकारी स्वास्थ्य सुविधा का ढांचा चरमरा जाएगा. 

  सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "अगर हम विभिन्न हितधारकों के प्रतिनिधियों को समिति का हिस्सा बनने के लिए कहना शुरू कर देते हैं, तो समिति का काम अव्यवस्थित हो जाएगा. हम जानते हैं कि समिति में वरिष्ठ महिला डॉक्टर हैं और उन्होंने अपना जीवन सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के लिए समर्पित कर दिया है. समिति सभी, ट्रेनी डॉक्टर्स की बात सुनेगी. रेजिडेंट डॉक्टर्स, सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर्स, नर्सों, पैरामेडिकल स्टाफ, समिति यह सुनिश्चित करेगी कि सभी प्रतिनिधियों की बात सुनी जाए."

  सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान अपनी एक आपबीती भी सुनाई, जब वह किसी रिश्तेदार को दिखाने सरकारी अस्पताल गए थे. उन्होंने बताया कि वह एक बार एक सरकारी अस्पताल के फर्श पर सोने के लिए मजबूर हुए थे, जब उनके एक रिश्तेदार की तबीयत खराब थी और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

  सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई स्टेटस रिपोर्ट में कई चौंकानेवाले खुलासे किये हैं. सीबीआई का कहना है कि पूरे मामले को लेकर अस्पताल प्रशासन का रवैया सवालों के घेरे में नजर आता है. पीड़िता के परिजनों को घटना की सूचना काफी देरी से पहुंचाई गई. परिवार को पहले पीडि़ता के बीमार होने और फिर सुसाइड की खबर दी गई. सीबीआई ने यह भी दावा की क्राइम सीन बदला गया. साफ नजर आ रहा है कि जुर्म पर पर्दा डालने की कोशिश की गई. 

  सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल सरकार के वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि जब आप पोस्टमार्टम करना शुरू करते हैं, तो इसका मतलब है कि यह अप्राकृतिक मौत का मामला है. यूडी 861/24 23:20 बजे दर्ज किया गया था, 9 अगस्त को जीडी एंट्री और एफआईआर 11:45 बजे दर्ज की गई थी, क्या यह सच है? यह बहुत आश्चर्य की बात है, पोस्टमार्टम यूडी के पंजीकरण से पहले होता है!

  कोर्ट ने भी कहा कि पुलिस डायरी और पोस्टमार्टम के वक्त में अतंर है. आरोपी की मेडिकल जांच पर भी कोर्ट ने सवाल उठाए हैं. कोर्ट ने कहा कि 30 साल में ऐसा मामला नहीं देखा. 

  चीफ जस्टिस ने कहा, "अपराध की GD एंट्री सुबह 10:10 पर हुई, जब फ़ोन के ज़रिए यह खबर मिली की थर्ड फ्लोर पर PG डॉक्टर बेहोशी की हालत में मिली है. पीड़ित के शव को देखकर बोर्ड ने शुरुआती राय दी थी कि मौत का कारण गला घोटने के कारण हो सकता है और सेक्सुअल एसॉल्ट से भी इनकार नहीं किया जा सकता. इसके बावजूद पोस्टमार्टम शाम 6-7 के बीच हुआ और उसके बाद जांच शुरू की गई." इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि नहीं यह बात सही नहीं है.

  जस्टिस पारदीवाला ने कहा, "जो सहायक पुलिस अधीक्षक हैं, उनका आचरण भी बहुत संदिग्ध है. उन्होंने ऐसा क्यों किया?" सीजेआई ने कहा कि पोस्टमार्टम और पूछताछ के बाद, शव मां को सौंप दिया जाता है. पुलिस स्टेशन लौटने के बाद एक यूडी मामला दर्ज किया जाता है, सभी पुलिस वरिष्ठों को सूचित किया गया था. ऐसा प्रतीत होता है कि यूडी की प्रारंभिक रिपोर्ट प्राप्त हो गई थी और सुबह 10:10 बजे दर्ज की गई, सूचना मिलने के बाद वे रात में पुलिस स्टेशन लौटे, रात 11:30 बजे एफआईआर दर्ज की गई.


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