रायपुर। विवेकानंद नगर श्री संभवनाथ जैन मंदिर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला जारी है। शनिवार को रायपुर के कुलदीपक तपस्वी रत्न ...
रायपुर। विवेकानंद नगर श्री संभवनाथ जैन मंदिर में आत्मोल्लास चातुर्मास 2024 की प्रवचनमाला जारी है। शनिवार को रायपुर के कुलदीपक तपस्वी रत्न मुनिश्री प्रियदर्शी विजयजी म.सा. ने जीवन में *धर्म की प्राप्ति* करने की प्रवचन श्रृंखला में बताया कि जीवन में गुणात्मक धर्म का होना आवश्यक है। आपने संसार के अंदर रहकर माता-पिता की सेवा की, बच्चों को पढ़ाया-लिखाया,समाज में रहने लायक बनाया,सामाजिक, व्यवहारिक, पारिवारिक कर्तव्य धर्म का पालन करते-करते जीवन में क्रियात्मक धर्म ( धर्म की क्रिया रूप ) को भी अपनाया लेकिन मात्र क्रियात्मक धर्म से मोक्ष नहीं होता, मोक्ष के लिए जरूरी है गुणात्मक धर्म। जीवन के अंदर यदि गुणों की प्राप्ति नहीं होगी तो मात्र क्रिया ही होगी तो वह कायक्लेष रूप हो कर ही रह जाएगी।
मुनिश्री ने कहा कि आपने हजारों की संख्या में सामायिक की लेकिन समता भाव जीवन में नहीं आया है तो सारी की सारी आराधना किए वो मात्र क्रियात्मक धर्म है। सामायिक करना यह क्रियात्मक धर्म है और सामायिक करते-करते जीवन में समता भाव आए ये गुणात्मक धर्म है। सिद्धि तप करना यह क्रियात्मक धर्म है लेकिन अनासक्ति का भाव जीवन में ना आए तो गुणात्मक धर्म नहीं होगा। जीवन के अंदर क्रियात्मक धर्म बढ़ता है तो गुणात्मक धर्म भी बढना चाहिए। यहां गुणात्मक धर्म के अंदर अक्रूरता गुण की बात प्रवचन में जारी है।
मुनिश्री ने कहा कि जीवन में कड़क व्यवहार जरूरी है लेकिन योग्य अवसर पर कड़क व्यवहार भी योग्य मात्रा में ही होना चाहिए। हमेशा कड़क व्यवहार करने वाला व्यक्ति कभी धर्म को प्राप्त नहीं कर सकता, दूसरे को धर्म की प्राप्ति नहीं करवा सकता । किसी को पीड़ा देकर आप धर्म की प्राप्ति नहीं कर सकते। इसी तरह से किसी को पीड़ा देकर किसी को धर्म छुड़ाना भी नहीं चाहिए। घर में भी सास-बहू, ननंद-भाभी, देरानी जेठानी के बीच समन्वय स्थापित होना चाहिए, जिससे दूसरों के सामने एक दुसरे को नीचा ना दिखाएं ।
ओजस्वी प्रवचनकार मुनिश्री तीर्थप्रेम विजयजी म.सा. ने आज प्रवचन के महत्व पर प्रकाश डाला। मुनिश्री ने कहा कि प्रवचन का मतलब परमात्मा का वचन, प्रवचन की ताकत बहुत है,ऐसे कई उदाहरण हैं कि प्रवचन ने बड़े से बड़े पापी को भी बदल दिया है। यदि प्रवचन का अनादर होता है तो वह परमात्मा का अनादर है। प्रवचन की अपनी अलग मर्यादा होती है। परमात्मा के वचन से हृदय का परिवर्तन होता है। ऐसा नहीं की जिन्होंने तपस्या की उसका हृदय का परिवर्तन होगा, जिन्होंने परमात्मा के वचन को एकाग्रता से सुना उसका भी हृदय परिवर्तन होगा। हमेशा प्रवचन सभा की गरिमा को बनाए रखिए। जैसे प्रवचन सभा और धर्म स्थान में जाते हैं तो अपने पैर के जूते चप्पल बाहर उतारते हैं वैसे ही अपने अहम (अहंकार) को भी बाहर रखकर धर्म स्थान और प्रवचन में आना चाहिए तभी आप धर्म के करीब आएंगे।
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