नई दिल्ली। महाराष्ट्र चुनाव से पहले मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लिया. जिसके तहत मराठी समेत पांच भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दे दिया. दरअस...
नई दिल्ली। महाराष्ट्र चुनाव से पहले मोदी सरकार ने बड़ा फैसला लिया. जिसके तहत मराठी समेत पांच भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दे दिया. दरअसल, गुरुवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को मंजूरी दे दी. बता दें कि केंद्र सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित करते हुए शास्त्रीय भाषाओं के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लिया था.
शास्त्रीय भाषा के लिए निर्धारित किया गया मानदंड
बता दें कि केंद्र ने शास्त्रीय भाषा की स्थिति के लिए एक मानदंड भी निर्धारित किया है. जिसके तहत भाषा अपने प्रारंभिक ग्रंथों/एक हजार वर्षों से अधिक के दर्ज इतिहास में उच्च प्राचीन होनी चाहिए. इसके साथ ही प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाना चाहिए.
इसके साथ ही इस भाषा की साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से नहीं ली गई हो. बता दें कि शास्त्रीय भाषा की स्थिति के लिए प्रस्तावित भाषाओं की जांच करने के लिए नवंबर 2004 में साहित्य अकादमी के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक भाषाई विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था.
2004 में शुरू हुआ था सिलसिला
बता दें कि नवंबर 2005 में मानदंडों को संशोधित किया गया. इसके बाद संस्कृत को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया था. केंद्र सरकार ने 2004 में तमिल, 2005 में संस्कृत, 2008 में तेलुगु, 2008 में कन्नड़, 2013 में मलयालम और 2014 में उड़िया को शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा दिया था. वहीं 2013 में महाराष्ट्र सरकार से एक प्रस्ताव मंत्रालय को भेजा था. जिसमें मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की मांग की गई थी. इसके बाद इस प्रस्ताव को एलईसी को भेज दिया गया. एलईसी ने शास्त्रीय भाषा के लिए मराठी की सिफारिश की.
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